मेरे न तुम्हारे
राम तो सगारे,
राम चले आयें
जो राम राम पुकारे।
हृदय थे आकुल,
राम नाम के व्याकुल,
सरयू किनारे
राम राम पुकारे ।
वर्षों व्यतीत हुए,
अल्हड़ से
गंभीर हुए,
वनवासों का त्रास सहा,
युद्ध युद्ध
अभ्यास रचा ।
न्यालालय के स्वांग रचाए,
ञृतुओं ने टेंट लगाए ।
कलयुग का काल था,
द्विगुणित वनवास था ।
मातायें अधीर हुई,
पीड़ायें
अब पूर्ण हुई ।
मन आंगन
दीवाली मनाएं है,
मेरे राम
आज घर आएं हैं।
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