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तिथियों की उलझन

Writer's picture: seemavedicseemavedic

तिथियों की उलझन: आइये सुलझाये

अंग्रेजी भाषा का प्रभाव जैसे-जैसे भारतीय समाज पर बढ़ता गया वैसे-वैसे हमारे परिवारों से हिंदी कम होते होते बस बोलचाल और रोजमर्रा की भाषा बनती गई और इस काम चलाऊ भाषा की पकड़ में रहा ऊपरी आवरण, अंतरात्मा कहां गई पता ही नहीं चला । दादी नानी से हमारे बच्चों तक आते-आते पौष माघ पूरी तरह से जनवरी-फरवरी में बदल गए । होली मार्च में और दिवाली अक्टूबर में स्थापित हो गई और इसीलिए जब कभी दिवाली सरक कर नवंबर में पहुंचती है तो लोग बड़े आश्चर्यचकित से दिखते हैं और उससे भी अधिक तब चकरा जाते हैं जब बात तिथि की आती है । कभी आधे दिन से शुरू होती हैं कभी रात को ही समाप्त हो जाती है। कभी कभी किसी तिथि का अस्तित्व ही नहीं होता तो कोई तिथि 2 दिन तक विराजी रहती है ।सच में सर घुमा दिया है उन तिथियों के झमेले ने । किसी को उदया तिथि नहीं समझ आती तो किसी को अस्त । बात बड़ी सीधी और सरल है किंतु फर्स्ट सेकंड, थर्ड ने प्रतिपदा/ परेवा,दूज और तीज की सौम्यता को सहज ही मलिन कर दिया है।

आज इसी मलिनता को झाड़ पहुंचकर चमकाते हैं और जो लोग तिथियों के चक्कर से चकरा रहे हैं उनकी उलझन दूर कर देते हैं।

भारतीय वैदिक ज्योतिष की परंपरा पूर्ण रूप से वैज्ञानिक तथ्यात्मक गणना पर आधारित है । आधुनिक विज्ञान को जिन गणनाओ को करने में वर्षों लगे वह तो हमारे भारतीय संस्कृति में मनीषियों ने हजारों वर्ष पूर्व ही लिख दिए थे। यह अधिकतर सभी को पता है अतः उसके विस्तार में ना जाकर सीधे तिथि पुराण पर आते हैं।

कोई भी तिथि कब शुरू होगी और कब समाप्त होगी । कितनी लंबी होगी और कितनी छोटी । इसकी गणना के पूर्णत: स्थापित खगोल विज्ञान के नियमों के अनुसार हिंदी तिथियों की गणना होती है । हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है और उसी से दिन और रात बनते हैं। एक दिन एक रात मिलकर एक दिन अर्थात अंग्रेजी कैलेंडर की तिथि बनती है आधी रात को 12:00 बजे से अगली रात को 12:00 बजे तक एक डेट या अंग्रेजी तिथि बनती है लेकिन यह तो सिस्टम को चलाए रखने की एक संतुलित व्यवस्था है जो 0 से 24 घंटों के विस्तार को एक इकाई के रूप में प्रयोग करती है।

हिंदी तिथि ,चंद्रमा ,सूर्य की गति की (पृथ्वी के सापेक्ष ) गणनात्मक इकाई है । पहले हम समझते हैं कि तिथि की गणना होती कैसे हैं, तभी बात समझ में आएगी । हमारा भचक्र या जोडिएक 360 डिग्री का है । चंद्रमा की गति तेज है और सूर्य की गति धीमी है । चंद्रमा भचक्र का एक चक्कर पूरा करने में 27.321 दिन लेता है जबकि सूर्य एक चक्कर पूरा करने में 365. 25 दिन लेता है । जब चंद्रमा और सूर्य के भोगांश (सरल भाषा में कहे तो दोनों ग्रहों की डिग्री) समान होती हैं तो अमावस्या का अंत होता है और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का आरंभ होता है। एक अमावस्या की समाप्ति से दूसरे अमावस्या के अंत तक के समय को चंद्रमास कहते हैं । पहले बताया है कि जब सूर्य और चंद्रमा दोनों के भोगांश (360°पर उनकी स्थिति) समान होते हैं तो अमावस्या का अंत होता है या दूसरे शब्दों में अमावस्या के अंत के समय सूर्य और चंद्र एक ही भोगांश पर होते हैं उसे यदि हम शून्य मान ले तो यहीं से प्रतिपदा आरंभ होती है ।चंद्रमा तेज गति होने के कारण शीघ्र चालू से सूर्य से आगे निकल जाता है और 29.53 दिन बाद दूसरी बार अमावस्य का अंत होता है ।इतने समय में चंद्र सूर्य से 360 डिग्री अधिक भ्रमण कर लेता है । एक चंद्र मास में 30 चंद्र दिवस या तिथि होती हैं । चंद्रमा का एक दिवस तक पूरा होता है जब चंद्रमा सूर्य से आगे चल लेता है अतः 360-degree को यदि 30 दिन से विभाजित करें तो 12 डिग्री आएगा अर्थात एक तिथि 12 डिग्री की होती है।

तिथि की गणना के सूत्र और उनकी विवेचना एक विस्तृत और आम पाठकों के लिए एक उबाऊ विषय हो सकता है इसलिए इसके विस्तार में ना जाकर बस इतना समझ ले कि सूर्य की प्रतिदिन की कोणीय गति 57 डिग्री से 1°1' तक होती है और चंद्रमा की प्रतिदिन की कोणीय गति कभी 15 डिग्री और कभी 12 डिग्री होती है। और इसी कारण 24 घंटे में सूर्य और चंद्र में अंतर 11 डिग्री से 14 डिग्री तक हो जाता है। ऊपर बताया था कि एक तिथि 12 डिग्री की होती है अर्थात 12 डिग्री पर एक तिथि बदल जाती है उपरोक्त अन्तर के कारण कभी यह अंतर 11 डिग्री होता है तो तिथि 24 घंटे से अधिक की होती है और जब 14 डिग्री का अंतर होता है तो तिथि 24 घंटे से छोटी हो जाती है । उपरोक्त गणना अनुसार तिथि दिन या रात के किसी भी समय कभी भी आरंभ होती हैं।

अब यदि एकादशी दिन के 9:00 बजे समाप्त हुई और द्वादशी उस समय आरंभ हुई तो उस तिथि को क्या माना जाए , एकादशी या द्वादशी। हमारे पूर्वजों , ऋषियों एवं मनीषियों ने यह माना कि गणना तो पूरी तरह से वैज्ञानिक है किंतु इससे संसार का दैनिक व्यवहार और व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी अतः उसे व्यवहारिक बनाए रखने हेतु यह निर्णय लिया गया कि सूर्योदय के समय जो तिथि होगी उसे ही उस दिन की तिथि कहा जाएगा ,चाहे वह तिथि सूर्योदय की 1 मिनट बाद तक ही रहे कर समाप्त हो जाए और इस प्रकार उसे उदया तिथि माना गया और वहीं पूरे दिन रहेगी ऐसा शास्त्र कहते हैं । उपरोक्त उदाहरण में उस दिन की तिथि एकादशी ही मानी जाएगी।

यदि कोई तिथि चंद्रमा की मंद गति के कारण पिछले दिन के सूर्योदय से 1 मिनट पहले ही आरंभ होकर अगले दिन के सूर्योदय के 2 मिनट बाद समाप्त होगी तब वह तिथि दोनों दिन रहेगी अर्थात अधिक तिथि या तिथि वृद्धि कहलाएगी ।

इसके विपरीत जब कभी चंद्रमा की गति शीघ्र होती है तो कई बार तिथि सूर्योदय के कुछ समय बाद आरंभ होकर अगले सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो जाती है तो उसे क्षय तिथि माना जाता है।

अब उदया तिथि से ही वह दिन जाना जाएगा यह तो समझ आ गया ,फिर भी कुछ उलझन है। उदाहरण के तौर पर विगत सकट चौथ पर चतुर्थी तिथि तो रात को लगी थी और उदया चतुर्थी तो 1 फरवरी को थी फिर भी 31 जनवरी को ही सकट चौथ का व्रत एवं पूजा क्यों रखी गई थी ?

इसका उत्तर यह है कि आज बहुत से विद्वान तार्किक बुद्धि के साथ ज्योतिष करने लगे हैं। और उसी तरह के आधार पर उनका यह कहना है कि सकट की पूजा चन्द्र दर्शन देखकर करी जाती है और सकट चतुर्थी का चंद्रमा तो रात को ही दिखेगा अगले दिन रात आते-आते गणना अनुसार तो पंचमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी । उस तर्क के अनुसार तो यह आधुनिक व्यवहार भी अनुकूल ही है किंतु सदियों चली आ रही परिपाटी से इतर यह नया चलन प्रायः आम जनों को उलझा देता है ।

इसके साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हिंदी तिथियों की यह व्यवस्था सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक है ।जब भारत में दोपहर होती है तब विश्व के किसी हिस्से में सूर्योदय हो रहा होता है ,जो तिथि यहां दोपहर में लगती है वो वहां प्रातः ही लग जाती है ।इसी से हमारी तिथि प्रणाली की वैज्ञानिकता एवं उपादेयता सिद्ध हो जाती है।

तिथियों की उपरोक्त विवेचना के अतिरिक्त , व्याख्या के और भी आयाम है किंतु समझने के लिए अभी इतना ही बहुत है ।

अंत में त्यौहार एवं पर्व तो धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक ऊर्जा के स्रोत एवं स्वरूप हैं। यह हमारी सदियों पुरानी धरोहर को आगे की पीढ़ी तक पहुंचाने की परंपरा के साथ-साथ उत्सव एवं उल्लास के आयोजन है और उनका आनंद तो सम्मिलित रूप में ही लिया जा सकता है अतः तिथियों के चक्कर में ना उलझकर जब सभी परिवार जन, पड़ोसी ,नाते , रिश्तेदार एवं मित्र पर्व मनाए तभी आप भी मना ले क्योंकि असली मजा तो सबके साथ ही आता है।


जय श्री कृष्ण 🙏🙏



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