कहां हो घर में पूजा घर
हैदराबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामानुजाचार्य जी की 12 टन सोने से बनी विशाल मूर्ति को देश को समर्पित किया । रामानुजाचार्य वैष्णव परंपरा के महान प्रवर्तक थे। सनातन परंपरा के निरंतर एवं जीवंत प्रवाह के एक महान प्रणेता, जिन्होंने धार्मिक एवं सामाजिक सुधार साथ साथ ही किए। धर्म-दर्शन,और ज्ञान की गंगा में रुचि रखने वाले लोग उनके नाम से भली भांति परिचित हैं।
यहां शीर्षक से इतर रामानुजाचार्य के विषय में प्रस्तावना लिखने का एक विशेष अभिप्राय है। सनातन एवं भारतीय संस्कृति के प्रति जनमानस की बढ़ती जागरूकता और रुचि के कारण यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है , कि घर में पूजा का स्थान कहां हो ? यदि अमुक स्थान, दिशा में पूजा घर है तो देवता और पूजा की स्थिति क्या हो ? तो यहां यह बताते चलें कि भारत में घर की व्यवस्था में मंदिर रखने का स्थान नहीं होता था । नगर व्यवस्था में मंदिर की स्थिति निर्धारित होती थी ,और लोग वही जाकर अपने आराध्य को श्रद्धा पूर्वक नमन एवं पूजन अर्चन करते थे । घर सिर्फ ग्रहस्थों के रहने और गृहस्थ कर्मों का स्थान था, किंतु रामानुजाचार्य ने घर में ही पूजा रखने और करने की प्रथा का आरंभ किया और शायद यही एक कारण था, जिससे आने वाले सैकड़ों सालों में जब विदेशी आक्रांताओं ने इस धरती को लूटा, तोड़ा , इस पर शासन किया तो यहां की संस्कृति के प्रमुख संवाहक, मंदिरों को भी तहस-नहस कर दिया । तब यह घर में रखी हुई पूजा एवं मंदिर ही थे , जिसने 800 सालों तक भारतीय संस्कृति की गंगा के जल को कभी भी सूखने नहीं दिया, और रोमन ,मेसोपोटामिया, एवं फारस या ईरान, जैसी जड़ मूल से नष्ट हो चुकी संस्कृतियों की तरह इतिहास की कहानी बनने से बचाए रखा।
आज भारत के प्रत्येक घर में पूजा का स्थान होता है । बल्कि बहुत से लोग घर में छोटा मोटा मंदिर ही बना कर अपनी व्यस्त दिनचर्या में पूजन अर्चन की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। लेकिन धीरे-धीरे छोटे होते घरों और फ्लैट संस्कृति में यह प्रश्न बार-बार पूछा जाने लगा है कि पूजा का स्थान क्या हो, कैसा हो और देवता की स्थापना कब ,और किस तरह करें।
हमारे शास्त्रों में इस पूजा स्थान को बहुत महत्व दिया है और इसकी स्थिति ,परिस्थिति को लेकर बहुत सारे नियम दिए हैं यद्यपि यह एक बड़ा और गहन विषय है और इसके प्रयोग के प्रभाव भी दूरगामी और गहरे हैं किंतु यहां पर संक्षेप में ही इनका वर्णन करना श्रेयस्कर रहेगा।
1-पूजा घर या स्थान सदैव ही घर के उत्तर, या पूर्व या उत्तर पूर्व में होना चाहिए,।
2-पूजा करते समय पूजा करने वाले को यह ध्यान रखना चाहिए कि उसका मुख पूजा करते समय पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर ही हो।
3- घर में रखी जाने वाली पूजा में मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। लेकिन यदि आधुनिक चलन के चलते मूर्तियां रखने भी पड़े , तो वह 9 इंच से ऊंची नहीं होनी चाहिए। साथ ही यह ध्यान भी रखें की मूर्ति 2 इंच से छोटी ना हो।
4- अपनी श्रद्धा अनुसार पूजा घर /स्थान जमीन पर बनाएं या ऊंचाई पर रखें , किंतु वह पूजा करने वाले के वक्ष स्थल के समांतर होना चाहिए।
5- पूजा स्थान के ऊपर के कैबिनेट या प्लेटफार्म पर यदि हो सके तो और कुछ भी ना रखें ।
6-पूजा स्थान को शयन कक्ष तथा बाथरूम से दूर ही रखें।
7-पूजा स्थान में यथासंभव तांबे के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए।
घर में मंदिर बनाते समय इस बात का ध्यान हमेशा ही रखना चाहिए की घर, गृहस्थ आश्रम का स्थान है अतः घर का मंदिर , गृहस्थ आश्रम की क्रियाकलापों से प्रभावित या मलिन ना हो जिससे देवता प्रसन्न रहें और अपनी कृपा बरसाते रहे।
सीमा श्रीवास्तव 🙏
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