🌹🌹 आकाश मे गुरू एवं शनि का महान युति🌹
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आजकल विश्व में सभी ओर विवाद,उत्तेजना, असंतोष एवं बनती बिगड़ती आशा तथा निराशा का वातावरण दिख रहा है । भारत सहित विश्व के सभी देश किसी न किसी प्रकार से दैवीय , मानवीय आपदाओं एवं राजनैतिक , सामाजिक एवं आर्थिक उठा पटक से जूझ रहे है । कोरोना के कारण पहले ही संपूर्ण विश्व नयी प्रकार की समस्याओ से जूझ रहा है ,वहीं उपरोक्त उथल पुथल के बीच एस्ट्रोनामर्स , फिजीसिस्ट तथा एस्ट्रोलाजर्स के साथ -साथ आम जन के बीच सर्वाधिक चर्चा एवं जिग्यासा है ,आकाश मे होने वाली गुरू एवं शनि की महान युति की ।बहुत से विद्वान अलग अलग विश्लेषण ,अलग अलग व्याख्या एवं अलग अलग भविष्यवाणियां कर रहे हैं , हमने भी
अपनी सीमित बुद्धि से इस घटना के लौकिक एवं अलौकिक पक्षों का विश्लेषण करने का प्रयास किया है ।
शनि एवं गुरू के संयोग की यह घटना प्रत्येक 20 वर्ष पर घटती है । फिर इसमें विशेष क्या है ? विशेष है इस घटना का 59 वर्षों के उपरान्त मकर राशि मे योग करना ।मकर राशि के स्वामी शनि हैं और अपनी राशि मे बलवान हैं । गुरू मकर राशि मे नीचस्थ होकर शुभ परिणाम नही देते ऐसे मे स्वामी भी अपने घर मे बैठ जायें तो टकराव तो बढ़ेगा ही । वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किसान आंदोलन के रूप मे यह टकराव भली भांति दिख रहा है ,जहाँ शनि किसानों के प्रतिनिधि ग्रह के रूप मे अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं और गुरू अर्थात ग्यान ( बिल की जानकारी ) की सभी बातों को सही होने पर भी खारिज कर रहे हैं ।
लेकिन इसे महान युति क्यों कहा जा रहा है ? क्योंकि यह घटना 800 वर्षों बाद घटने जा रही है ।पृथ्वी की गति ,सारे ग्रहों की गति मे ,विभिन्न गणनाओं मे ऐसा कभी न कभी होता है कि कुछ ग्रह / सभी ग्रह एक दूसरे के आस पास से गुजरें ,किंतु यह विशिष्ट इस कारण है कि इस बार यह ग्रह इतने पास से गुजरेंगे कि एक डिग्री का भी अंतर नही रहेगा ।16 दिसंबर 2020 से 25 दिसंबर 2020 के बीच शनि एवं गुरू दोनों ही एकदम एक दूसरे की डिग्री पर रहेंगे । 21 दिसंबर 2020 वह तिथि है जिस दिन गुरू एवं शनि एकदम क्लोजेस्ट डिग्री पर होंगे ,अर्थात दोनो के बिंब एकीभूत हो जायेंगे ( दोनो एक ही दिखेंगे ) । आसमान मे यह दुर्लभ दृश्य 21 दिसंबर को देखा जा सकता है ( यद्यपि संभवत; आकाश बादलो से आच्छादित हो ) । इससे पूर्व यह अद्भुत घटना 1226 मे घटी थी ।
छठी शताब्दी मे उज्जैन के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के राजज्योतिषी वाराहमिहिर द्वारा रचित ग्रंथ वृहत्संहिता मे इसका उल्लेख है ।वाराहमिहिर के अनुसार इस प्रकार की युति जब दोनो ही ग्रहों के बिंब एकीभूत हो जायें (एक दूसरे पर आ जाएं ) तो इसे भेदयुति कहतें हैं ( नग्न ऑखों से देखने पर भी भेद नही ) यह भेदयुति बड़े और व्यापक मौसम परिवर्तन लाती है । बड़े बड़े घरानों मे ,दलों मे फूट पड़ती है तथा ग्रहयुद्ध की परिस्थितियां बनती हैं ।आपसी टकराव अपने चरम पर पहुंच जाता है । ( विश्व की महाशक्तियों के बीच टकराव एवं युद्ध के हालात बन सकते हैं ।)
इस युति मे शनि शक्तिशाली एवं गुरू कमजोर है ,दूसरी ओर गुरू ने शनि को आच्छादित कर दिया है अर्थात खींच तान और समझौतो के दृश्य दिखते रहेंगे ,साथ ही विरोधाभासी घटनायें भी अचंभित करेंगी । न्यायपालिका की भूमिका इस योग के कालखंड में ,(बल्कि इससे थोड़ा आगे भी ) विशेष एवं उल्लेखनीय रहेगी ।
गुरू आकाश है ,शनि वायु है । गुरू भारी है तो शनि हल्का है । गुरू पर हाइड्रोजन है ,शनि पर नाइट्रोजन है और दोनो की युति से ऑक्सीजन की कमी हो सकती है साथ ही अस्थमा ,बी . पी . की,तथा शुगर की समस्या बढ़ सकती है ।
गुरू एवं शनि दोनो ही ठंडे ग्रह हैं ।दोनो ही धीमी गति से चलतें हैं ।दोनों ही वृहद है ।दोनो ही वृद्ध हैं ।अत: इस समय मे अत्यधिक ठंड ,पाला ,बर्फबारी ,तूफान ,टारनाडों का प्रकोप हो सकता है ।सर्दी एवं बर्फबारी / वर्षा के पुराने रिकार्ड्स भी टूट सकते है ।
मेरे विचार से यहाँ ये भी ध्यान रखने योग्य है कि गुरू शनि की यह युति समसंबंध है ,एकाकार हो कर वे आपस मे बैरी नही हो सकते । दोनो ही ग्रह इतने विशाल हैं कि न ही वे एक दूसरे मे विलीन हो सकते हैं ना ही टकरा कर अपना नुक्सान कर सकते हैं अत: सारी उठापटक अंतत: शांत हो जानी चाहिए । शनि कर्मो के देवता है तो गुरू कर्मफल प्रदाता ।शनि गुरू का सम्मान करते हैं ।दोनो ही धैर्यवान हैं ,अत: इस समय अनुशासनहीनता से दूर रहकर धैर्यपूर्वक समय के गुजरने की प्रतीक्षा करनी होगी ।
यह युति युग परिवर्तन की ओर ले जाने वाली घटना है ।आने वाले समय में बहुत से महत्वपूर्ण परिवर्तन भौगोलिक , राजनैतिक ,सामाजिक एवं आर्थिक स्तर पर होंगे किंतु मेरा विश्लेषण है कि इन सबसे भी अधिक धार्मिक उन्मुखता तथा धार्मिक विवाद एवं उनकी तर्कपूर्ण तथा न्यायसंगत प्रतिष्ठा भी इस काल का हिस्सा बनेंगे । युग परिवर्तन की आहट शनि गुरू की यह युति दे भी रही है ,बहुत से महत्वपूर्ण निर्णय, नियम एवं कानूनों को हम अमली जामा पहनते देखेंगे । वैश्विक राजनीति एवं कूटनीति पर भी इसके व्यापक प्रभाव दिखेंगे ,धीरे धीरे हम विश्व मे नये समीकरण बनते हुये देखेंगे ।
अंत मे गुरू तथा शनि के इस संयोग का एक विशिष्ट पक्ष भी है उन लोगो के लिये जो आध्यात्म से जुड़े है । गुरू दाता है शनि याचक है ,गुरू ग्यान है शनि भक्ति है ,गुरू विवेक है शनि वैराग्य है,गुरू साधन है शनि साधक है । गुरू और शनि का यह संयोग एकात्मवाद की यात्रा है ,जहाँ हम न हम रहें ,तुम न तुम रहो ।यह भक्ति एवं तप का समय है ।हम सब उसी ईश्वर के हैं , जो हममे है । यह आत्म चिंतन का काल है । अंतर मे समाहित अनन्त को खोजने का काल है।यह लौ लगाने की घड़ी है ,डूब जाने का काल है ।यही साधना है ,यही समाधि है ,यहीं योगियों की ध्यानावस्था है ।यही वह महान मिलन है जिसकी ऊर्जा के प्रकाश पुंज मे सिद्धार्थ ने बुद्ध को पाया ,चैतन्य महाप्रभु हो गये ,नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानन्द बन गये ,मीरा दीवानी हो गयी और अर्जुन ने गीता को पाया । यही है वह समय ,यही है वह दिशा ,यही है वह महान युति ।
🌹🌹 जय श्री कृष्ण 🌹🌹
🏵🏵 सीमा श्रीवास्तव🙏🙏
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