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Navdurga Aaraadhna

Writer's picture: seemavedicseemavedic

Updated: Jan 21, 2021

नवरात्र उत्साह ,उल्लास एवं उमंग से भरे ञृतुपरिवर्तन के नौ दिन जिसमे देवी के नवदुर्गा रूप की पूजा पूर्ण श्रद्धा एवं मंगलकामनाओ के साथ की जाती हैं। शारदीय नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष मे आते हैं,पूर्ण चंद्रमा के अश्वनी नक्षत्र मे गोचर के साथ ही ञृतु परिवर्तन का यह पर्व पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से मॉ को समर्पित होता है । शारदीय नवरात्र शरद विषुव ( इक्विनॉक्स) के आसपास ही पड़ते हैं जब रात एवं दिन बराबर होते है और फिर धीरे धीरे रात बड़ी तथा दिन छोटे होने लगते हैं। शिव की शक्ति अर्थात मॉ शक्ति ब्रंहॉड की समस्त ऊर्जाओ तथा बल का स्रोंत है और इन नौ दिनो की नवदुर्गा पूजा से मनुष्य नौ ग्रहो मे अंतर्निहित शक्तियो को संचारित करके सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करते है ।प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली मे इसका रहस्य छुपा है ,किंतु या तो आम व्यक्ति को इस बारे मे जानने मे रूचि ही नही होती या फिर उसे पता ही नही ,वो तो मात्र भौतिक जगत की सुख दुख एवं सुविधाओ के लिए उत्सुक रहते है। नवरात्र के प्रथम दिन मॉ शैलपुत्री की आराधना की जाती है ।मॉ शैलपुत्री आदिपराशक्ति हैं ।पर्वतराज हिमालय की पुत्री मॉ शैलपुत्री दो हाथो मे कमल के पुष्प तथा एक हाथ मे त्रिशूल धारण किये हुए ,ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की शक्ति से युक्त हैं । गाय पर बैठी हुई मॉ की भक्ति की यात्रा मूलाधार चक्र से आरंभ होती है ।यह पिता के घर से पति के घर की यात्रा है,यहीं से शक्ति जाग्रत होती है शिव को पाने की, सत्य को खोजने की ।मॉ शैलपुत्री पूर्ण प्रकृति दुर्गा हैं, विश्व का आधार है ,संपूर्ण विश्व को यहीं से शक्ति प्राप्त होती है । द्वितीय दिन मॉ ब्रहचारिणी की पूजा की जाती है, देवी दुर्गा का द्वितीय स्वरूप, जिन्होंने अपने पति शिव को पाने के लिए अनेक पुनर्जन्म लिए । ब्रहचारिणी अर्थात वह स्त्री जो ब्रह्म की खोज मे है, मॉ के एक हाथ मे जप माला तथा दूसरे हाथ मे कमंडल है।शिव को पाने के लिए स्व ,ब्रह्म से आगे की ओर बढ़ना ।अस्तित्व से ,अहम् को पीछे छोड़ कर आगे जाने की भक्ति ही मॉ की आराधना है। तृतीय दिवस मॉ चंद्रघंटा स्वरूप की आराधना की जाती है, मॉ घंटे के आकार के अर्धचंद्र को धारण किये हुए हैं तथा उनका तृतीय नेत्र सदा खुला रहता है ,वे सदा दुष्टो के संहार के लिए तैयार रहती है।चंद्रखंडा ,चंद्रिका तथा रणचंडी मॉ के अन्य नाम है।साहस एवं शौर्य की अधिष्ठात्री मॉ की कृपा से सभी प्रकार के पापों,कष्ट,शारीरिक व मानसिक पीड़ा तथा भूत प्रेत बाधा का नाश होता है। नवरात्र के चौथे दिन नवदुर्गा रूप के चतुर्थ स्वरूप मॉ कूष्मांडा की आराधना की जाती है । अत्यन्त सामर्थ्यवान एवं शक्तिशाली मॉ सूर्य की ऊर्जा को वहन करती है। कूू अर्थात सूक्ष्म,+ऊष्मा, + अंड अर्थात सूक्ष्म जीव ब्रंहॉड कूष्मांडा का एक अन्य अर्थ है कद्दू ।कद्दू मे ढेरो बीज होते है और हर बीज मे छुपा है नवजीवन।यह सकारात्मक शक्ति तथा शाश्वत जीवन चक्र का प्रतीक है।इस प्रकार मॉ कूष्मांडा मे संपूर्ण सृष्टि अंतर्निहित है। मॉ के इस रूप की पूजा से मनुष्य को प्राण शक्ति की प्राप्ति होती है । नवरात्र के पंचम दिवस मॉ के पंचम स्वरूप स्कंदमाता की आराधना की जाती है ।मॉ स्कंदमाता शांति, अहिंसा तथा साहस की देवी है,मॉ करूणामयी स्वरूप है। देवी स्कंदमाता को धैर्य तथा मोक्ष की धात्री भी माना जाता है। विशुद्धि चक्र की ऊर्जा मॉ स्कंदमाता की आराधना मे समाहित है।ऐसा माना जाता है कि कमल के पुष्प पर बैठ ही माता ध्यान साधना करती है इसी कारण उन्हें पद्मआसना भी कहते हैं,संतान रक्षा हेतु भी मॉ की पूजा करी जाती है। नवरात्र के छठे दिन मॉ के षष्ठम स्वरूप मॉ कात्यायनी की आराधना करी जाती है ।माना जाता है कि ञृषि कात्यायन के यहां देवी पार्वती के जन्म लेने के कारण उनके इस रूप को कात्यायनी कहा गया । कात्यायनी शब्द का अर्थ है जो जिद एवं विनाशपूर्ण अहंकार का नाश कर दे। वैवाहिक जीवन की समस्याओ के निराकरण के लिए मॉ की आराधना विशेष फलदायी है। नवरात्र के सातवें दिन देवी के सप्तम स्वरूप मॉ कालरात्रि की पूजा करी जाती है। माना जाता है कि मॉ पार्वती अपनी कंचन काया रूप हटा कर अपने काली स्वरूप मे आती है इसी कारण उन्हें मॉ काली कहा जाता है ।दुख,दर्द,नाश एवं मृत्यु अवश्यंभावी है ,इनसे बचा नही जा सकता ।मॉ इस रूप मे अग्यान एवं अंधकार का विनाश करती है ।काल अर्थात समय तथा मृत्यु एवं कालरात्रि अर्थात काल का नाश ,अत: मॉ अग्यान को नष्ट कर अंधकार मे प्रकाश लाता है।इस रूप मे मॉ दुष्टो का नाश कर अपने भक्तो की रक्षा करती है। नवरात्र के आठवें दिन देवी के अष्टम रूप मॉ महागौरी की पूजा ,अर्चना का विधान है । माता अपने इस रूप मे संसार की सभी दुुष्ट शक्तियो से मुक्ति दिलवाती है । महागौरी अर्थात अत्यन्त गोरी अत: वह श्वेत वस्त्रो को धारण करने वाली अति रूपवान है।श्वेतरूपा मॉ चंद्रमा के समान गौरवर्ण है ,वे दया, करूणा एवं शांति स्वरूप है। अलौकिक एवं करूणामयी सफेद अथवा हरी साड़ी मे सजी मॉ बैल की सवारी करती है । मॉ सदा ही अपने भक्तो की बुराईयों को दूर कर उनकी आत्मा को शुद्ध करती है,और अपने भक्तो को सुख शांति व ग्यान का आशीर्वाद देती है। नवरात्र के नवें दिन नवदुर्गा के नवम रूप मॉ सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। सिद्धि अर्थात परालौकिक शक्तियां अथवा ध्यान ग्यान, दात्री अर्थात देने वाली । भगवान शिव की शक्ति ही सिद्धिदात्री है। अर्धनारीश्वर के दो योग शिव एवं शक्ति का एकात्म होना ही साधना का अलौकिक स्वरूप है। सभी सिद्ध पुरूष,गंधर्व,यक्ष असुर एवं देवता सदा ही मॉ सिद्धिदात्री की पूजा करते है। नवदुर्गा अाराधना के इस सोपान पर ही साधना का फल मिलता है ,कुंडली का भाग्य भाव यही से अगली यात्रा शुरू करता है । फिर कभी उसकी चर्चा करेंगे आज तो बस मॉ के धरा आगमन पर पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मॉ को समर्पित! या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै ,नमो नम:!! 🌹🌹## सीमा श्रीवास्तव ##🙏🙏



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